न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन में प्राइवेट फायनेंस की भूमिका महत्वपूर्ण : अमिताभ कांत
न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन पर एक बार फिर ध्यान खींचने के इरादे से इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी, एंड टेक्नालजी (iForest) ने दिल्ली में इस विषय के तमाम नीतिगत और वित्तीय पहलुओं पर बात करने के लिए पहला ग्लोबल जस्ट ट्रांज़िशन डायलॉग आयोजित किया। इस आयोजन का उद्देश्य जस्ट ट्रांज़िशन, या न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन, के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों को एक मंच पर लाना था जिससे वो सब इस विषय पर विकासशील देशों के नज़रिये से अपने विचारों और अनुभवों का आदान-प्रदान कर सकें।
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए, भारत के G20 प्रेसीडेंसी के शेरपा, अमिताभ कांत ने कहा कि "इस न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए प्राइवेट फायनेंस का उपयोग करने की हमारी क्षमता महत्वपूर्ण रहेगी।
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए, भारत के G20 प्रेसीडेंसी के शेरपा, अमिताभ कांत ने कहा कि "इस न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए प्राइवेट फायनेंस का उपयोग करने की हमारी क्षमता महत्वपूर्ण रहेगी।
हमें नए वित्तीय उपकरण और बहुपक्षीय संस्थाओं के काम करने के तरीकों का संशोधन करने की भी आवश्यकता है जिससे वहाँ से होने वाले फायनेंस में सुधार हो सके।" अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कांत ने जोड़ा कि, "विंड और सोलर एनेर्जी, जो पंप वाली स्टोरेज के साथ मिली हुई हैं, ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत को कम करने के लिए महत्वपूर्ण होंगी और ये भारत के लिए एक एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए रास्ते खोलेंगी।”डायलॉग में, आईफोरेस्ट के अध्यक्ष और सीईओ चंद्र भूषण ने कहा, "जहां एक ओर हमारी न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन की रणनीति देश के नेट जीरो लक्ष्य और ऊर्जा स्वावलम्बन के लक्ष्यों द्वारा मार्गदर्शित होनी चाहिए, वहीं हमारे काम ऐसे होने चाहिए जिससे ग्रीन एनेर्जी और उद्योगों को बनाने और एक कुशल कार्यबल का विकास करने में मदद हो। इसलिए, न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन को भारत के औद्योगिक राज्यों और जिलों में हरित विकास के एक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए, साथ ही इसे गुणवत्ता वाले हरित कार्यों और सभी के लिए एक बेहतर जीवन उपलब्ध कराना के अवसर के रूप में भी देखा जाना चाहिए।"
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य शमिका रवि ने उद्घाटन सत्र में कहा कि एनेर्जी ट्रांज़िशन की आवश्यकता को ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दे के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है। कई जिले एसपीरेशनल जिले भी हैं और वहाँ लेबर ट्रांज़िशन एक समय लेने वाला और चुनौतीपूर्ण कार्य होने जा रहा है। वित्तपोषण की बात करते हुए, उन्होंने कहा कि बड़े बहुपक्षीय बैंकों को कदम बढ़ाना होगा और ट्रांज़िशन के लिए वित्त प्रदान करना होगा।इस आयोजन में अंतर्राष्ट्रीय अनुभव, राष्ट्रीय और राज्य सरकारों की भूमिका, एक न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत विशेषाधिकार, और वैश्विक दक्षिण पर ध्यान केंद्रित करने वाली वित्तपोषण आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले सत्र थे। दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेषज्ञ, प्रमुख नीति सलाहकार, शीर्ष केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारी, और श्रमिक संघों, उद्योग, बहुपक्षीय संस्थानों, बैंकों और लोकोपकार के प्रतिनिधियों ने विभिन्न सत्रों के दौरान अपनी अंतर्दृष्टि और टिप्पणियों को साझा किया।राज्यों की भूमिका के बारे में ओडिशा के मुख्य सचिव प्रदीप जेना ने कहा कि प्रौद्योगिकी में होने वाले बदलाव संभालना आसान है।
वो आगे कहते हैं, "जीवाश्म-ईंधन, विशेष रूप से कोयला खनन और संबंधित परिवहन क्षेत्र, में लेबर वर्कफोर्स की बड़ी भूमिका है। इसलिए एक न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन में एक बड़ी चुनौती होगी इस मानव सघन वर्कफोर्स का बेहतर भविष्य सुनिश्चित करना। ट्रांज़िशन की योजना बनाने के लिए नौकरियों, स्किलिंग और रीस्किलिंग में बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता होगी । एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू होगा केंद्र और राज्य सरकारों की अलग-अलग जिम्मेदारियों को परिभाषित करना।” उन्होंने आगे कहा, "कम परेशानी वाले वाले ट्रांज़िशन के लिए राज्यों को बहुत सारी तकनीकी सहायता, साझेदारी, और मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी।"झारखंड के हजारीबाग से संसद सदस्य जयंत सिन्हा ने वित्त की आवश्यकता के बारे में बात करते हुए कहा कि “इस एनेर्जी ट्रांज़िशन की शुरुआत कोयले के क्षेत्र से होनी चाहिए। हमें इसके लिए पूंजी के विविध स्रोतों को तैनात करने की जरूरत है।
हालाँकि, हमें इस पूंजी का उपयोग करने के लिए संस्थागत और प्रशासनिक क्षमता का तत्काल निर्माण करने की भी आवश्यकता है। वित्तपोषण और संस्थागत क्षमता निर्माण दोनों एक साथ होने चाहिए।”चर्चाओं के इस दौर में iFOREST ने दो रिपोर्ट भी जारी कीं - 'जस्ट ट्रांजिशन फ्रेमवर्क फॉर इंडिया: पॉलिसीज, प्लान्स एंड इंस्टीट्यूशनल मैकेनिज्म ' और 'जस्ट ट्रांजिशन कॉस्ट्स एंड कॉस्ट फैक्टर्स: ए डिकंपोज़िशन स्टडी' - जो आवश्यक नीतियों, योजनाओं, संस्थानों और वित्तपोषण के लिए पहला खाका प्रदान करते हैं भारत में एक उचित ऊर्जा परिवर्तन के लिए।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष और सिफारिशें हैं
• भारत के न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन ढाँचे में केवल कोयला ही नहीं बल्कि सभी जीवाश्म ईंधन क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिए।
• एक व्यापक डीकार्बोनाइजेशन रणनीति को अपनाने की आवश्यकता है।
• ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और उसमें सामाजिक और आर्थिक व्यवधानकमकरने के लिए एक चरणबद्ध ट्रांज़िशनका दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। अगले दशक में जिन बातों पर विचार करना होगा उनमें पुरानी और लाभहीन खदानें, पुराने बिजली संयंत्र और ऐसे क्षेत्र जहां तेजी से तकनीकी परिवर्तन हो रहा है, जैसे कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र, प्रमुख हैं।
• केंद्र सरकार की मुख्य भूमिका एक राष्ट्रीय न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन नीति विकसित करने की होगी और साथ ही उसे हरित विकास, हरित रोजगार और जीवाश्म ईंधन क्षेत्रों के विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके अलावा, केंद्र सरकार को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण भी जुटाना होगा।
• एक व्यापक राज्य और जिला न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन कार्य योजना विकसित करना राज्य सरकार की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होगा।
• राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र जस्ट ट्रांजिशन कमीशन और राज्य स्तर पर एक टास्क फोर्स एक जन-केंद्रित योजना तैयार करने के लिए आवश्यक रहेंगी।
• अगर सिर्फ कोयला खदानों और ताप विद्युत क्षेत्रों की ही बात करें तो अगले 30 वर्षों में भारत में उचित एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए कम से कम $900 बिलियन की आवश्यकता होगी। इसमें से करीब 300 अरब डॉलर की जरूरत होगी।
• विकासशील देशों में न्यायोचित एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। भारत जैसे देश में जीवाश्म ईंधन के आर्थिक विविधीकरण का समर्थन करने के लिए और हरित ऊर्जा और औद्योगिक विकास और प्रभावित समुदायों की सहनशीलता के निर्माण करने के लिए अनुदान और रियायती वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।
अंत में चंद्र भूषण ने कहा कि चर्चाओं की प्रासंगिकता और उपयोगिता को देखते हुए अब वो इस डाइलॉग को एक वार्षिक आयोजन बनाएँगे।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष और सिफारिशें हैं
• भारत के न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन ढाँचे में केवल कोयला ही नहीं बल्कि सभी जीवाश्म ईंधन क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिए।
• एक व्यापक डीकार्बोनाइजेशन रणनीति को अपनाने की आवश्यकता है।
• ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और उसमें सामाजिक और आर्थिक व्यवधानकमकरने के लिए एक चरणबद्ध ट्रांज़िशनका दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। अगले दशक में जिन बातों पर विचार करना होगा उनमें पुरानी और लाभहीन खदानें, पुराने बिजली संयंत्र और ऐसे क्षेत्र जहां तेजी से तकनीकी परिवर्तन हो रहा है, जैसे कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र, प्रमुख हैं।
• केंद्र सरकार की मुख्य भूमिका एक राष्ट्रीय न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन नीति विकसित करने की होगी और साथ ही उसे हरित विकास, हरित रोजगार और जीवाश्म ईंधन क्षेत्रों के विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके अलावा, केंद्र सरकार को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण भी जुटाना होगा।
• एक व्यापक राज्य और जिला न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन कार्य योजना विकसित करना राज्य सरकार की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होगा।
• राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र जस्ट ट्रांजिशन कमीशन और राज्य स्तर पर एक टास्क फोर्स एक जन-केंद्रित योजना तैयार करने के लिए आवश्यक रहेंगी।
• अगर सिर्फ कोयला खदानों और ताप विद्युत क्षेत्रों की ही बात करें तो अगले 30 वर्षों में भारत में उचित एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए कम से कम $900 बिलियन की आवश्यकता होगी। इसमें से करीब 300 अरब डॉलर की जरूरत होगी।
• विकासशील देशों में न्यायोचित एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। भारत जैसे देश में जीवाश्म ईंधन के आर्थिक विविधीकरण का समर्थन करने के लिए और हरित ऊर्जा और औद्योगिक विकास और प्रभावित समुदायों की सहनशीलता के निर्माण करने के लिए अनुदान और रियायती वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।
अंत में चंद्र भूषण ने कहा कि चर्चाओं की प्रासंगिकता और उपयोगिता को देखते हुए अब वो इस डाइलॉग को एक वार्षिक आयोजन बनाएँगे।
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