वन मुखिया के आत्मसम्मान पर शासन का "चाबुक"

 


देहरादून: शासन द्वारा प्रमुख वन संरक्षक (होफ) के पद से हटाये गये सीनियर आईएफएस राजीव भरतरी ने आपे आत्म सम्मान की लड़ाई लड़ने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना मुनासिब समझा,क्योंकि उन्होंने इस बात का अन्दाजा लगा लिया था कि तानाशाह सरकार से मुकाबला लेने के लिए अदालत ही एक विकल्प है। ऐसे में अदालत ने भी सीनियर आईएफएस का पक्ष देखने के बाद उनके हक में अपना फैसला सुनाया और सरकार को उन्हें उनके पद पर चार्ज देने के लिए निर्देशित किया।

सरकार ने भी गफलत में रहते हुए उन्हें चार्ज देने के शासनादेश जारी करने में तकरीबन चार घण्टे का समय लगा दिया। अब चूंकि राजीव भरतरी अपने वर्तमान पद पर दोबारा आसीन तो हो गये लेकिन सरकार अपनी खिसियाहट छिपा नहीं पाई और आनन फानन में शासनादेश जारी करके राजीव भरतरी की सारी पावर सीज कर दीं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या अपने आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ने वालों का ये ही हश्र होता है जैसा कि राजीव भरतरी के साथ हुआ।

जी नहीं लेकिन ये भाजपा सरकार है जो अपने तानाशाही के चाबुक को चलाने में बिल्कुल भी देर नहीं करती जैसा कि उनकी पावर सीज करने का शासनादेश इस बात की गवाही दे रहा है। भले ही सरकार ने अपमान का घूॅंट पीकर अदालत का आदेश मान लिया हो लेकिन राजीव भरतरी के खिलाफ सरकार की खुन्नस तो है ही। राजीव भरतरी को सरकार ने कुर्सी तो सौंप दी लेकिन अधिकार छीनकर एक बार फिर उनके आत्मसम्मान को ललकारा है। ऐसे में ‘‘सत्यमेव जयते’’ का भी मखौल उड़ाया जा रहा है।

अब ये तो स्पष्ट था कि सीनियर आईएफएस को विधायिका की तानाशाही बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने न्यायपालिका की शरण ली,लेकिन सरकार ने जिस तरह से उनके अधिकारों को सीमित कर दिया उसे देखकर लगता है कि विधायिका का चाबुक अभी भी राजीव भरतरी के आत्मसम्मान पर प्रहार कर रहा है। बहरहाल अब देखना ये है कि तानाशाह बन रही सरकार राजीव भरतरी को उनके खिलाफ अदालत जाने का और क्या इनाम देगी ये तो अभी भविष्य की आगोश में है लेकिन एक बात स्पष्ट कि भाजपा नीत सरकार अपने हक की लड़ाई लड़ने वालो को कुचलना जानती है,अब देखना ये है कि ‘‘सत्य की जीत’’ होती है या ‘‘सत्य’’ पराजित होता है ये तो आने वाला समय ही बतायेगा।

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