सैलानियों की दृष्टि से ही नहीं बल्कि धार्मिक रूप से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है जगन्नाथ पुरी
भारत के अनेक पर्यटन स्थलों में ओडिशा राज्य के जगन्नाथ पुरी और आस-पास के पर्यटन स्थलों की यात्रा कर हम कह सकते हैं कि यह केवल एक धार्मिक यात्रा ही नहीं वरन मनोरंजन से भी भरपूर है। हम यात्रा का प्रारम्भ जगन्नाथ पुरी के सुंदर और विशाल समुंद्री तट से करते हैं। गोल्डन बीच के नाम से विख्यात है पुरी का समुंद्र तट। यह बीच केवल सैलानियों की दृष्टि से ही नहीं वरण धार्मिक रूप से श्रद्धालुओं की आस्था का भी केंद्र है। सैलानी जहाँ मनोरंजन करने आते हैं वहीं श्रद्धालु भगवान जगन्नाथजी के नाम से पवित्र स्नान कर पुण्य कमाते हैं। यह तट पुरी के जगन्नाथ जी के मंदिर के समीप लोगों की आस्था का प्रबल केंद्र है। यह एक सुरक्षित बीच है जहाँ लोग जी भरकर समुंद्र में स्नान करने का आनन्द ले सकते हैं। यहाँ दिन भर लोगों का जमघट लगा रहता है और वे अपने-अपने तरीके से बीच और समुंद्र का मजा लेते हैं। यहां आध्यात्म और प्रकृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
विशेष रूप से सुबह और शाम को सुनहरी रेत पर नंगे पैर घूमना, मखमली रेत पर बैठ कर प्रातः सूर्योदय एवं सांय सूर्यास्त की कोमल रश्मियों के साथ समुंद्र में उसका रंगीन प्रतिबिम्ब और बीच की ओर छपाक से आती पानी की लहरों को देखना, कभी न भूलने वाले चित्ताकर्षक दृश्य होते हैं। देर तक समुंद्र और आसपास के नजारों को निहारना, बच्चों का रेत से खेलना, रेत पर सूर्य स्नान,समुद्र में स्नान, तैरना और नौकायन पर्यटकों को मस्ती और ताजगी से भर देता हैं। संध्या समय में खास कर बच्चें घुड़सवारी और ऊंट सवारी का मजा ले सकते हैं। बीच पर सैलानियों के मनोरंजन के लिये साहसिक वाटर स्पोर्ट्स स्कूबा डाइविंग एवं सर्फिंग की सुविधा भी उपलब्ध है। बीच के किनारे स्नेक्स और सी फूड के स्टाल्स लगे हैं।
प्रतिवर्ष नवम्बर माह में बीच पर ओडिशा की संस्कृति एवं विरासत (हेरिटेज) को बढ़ावा देने के लिये रंगबिरंगे वार्षिक पुरी बीच उत्सव का आयोजन किया जाता है। उत्सव के दौरान भारत में विविध प्रकार के शास्त्रीय एवं लोक नृत्यों के प्रदर्शन के साथ-साथ हस्तशिल्प, हैंडलूम एवं रेत कला की प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं। रेत कला प्रदर्शन के लिये यह उत्सव विशेष तौर पर जाना जाता है। देश भर के रेत कला शिल्पी इसमें भाग लेकर अपनी शिल्प का प्रदर्शन करते हैं। फैशन शो एवं रॉक शो के आयोजन उत्सव में चार चांद लगा देते हैं। बीच पर वॉलीबाल,कबड्डी,मलखम एवं नावों की दौड़ प्रतियोगिता जैसे परम्परागत खेलों को सैलानी रुचि पूर्वक देखते हैं, और कभी-कभी इनमें शामिल होकर लुत्फ भी उठाते हैं। उत्सव का आयोजन होटल एवं रेस्टोरेंट संघ ओडिशा द्वारा पर्यटन मंत्रालय, आयुक्त हस्तशिल्प एवं पूर्वी जोन सांस्कृतिक केंद्र, कोलकात्ता के सहयोग से किया जाता हैं।
पुरी
भुवनेश्वर से 60 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित पुरी भारत का ही नहीं विश्व में एक धार्मिक नगरी होने का गौरव प्राप्त करता है। पुरी शहर के समीप स्थित समुद्र इसके चरण पखारता है। इसे हजारों वर्षों से कई नामों यथा नीलगिरी, नीलाद्रि, नीलांचल, पुरूषोत्तम, शंखश्रेष्ठ, श्रीश्रेष्ठ, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथपुरी के नाम से जाना जाता है। पुरी भारत के प्रमुख चार धामों में से एक है।
जगन्नाथ मन्दिर
पुरी नामक स्थान पर जगन्नाथ जी का भव्य एवं प्राचीन कलात्मक मंदिर है। इस मंदिर के कारण ही पुरी को जगन्नाथपुरी कहा जाता है। मंदिर का निर्माण कलिंग राजा अनन्तवर्मन ने कराया था तथा 1174 में अनंग भीमदेव ने इस जीर्णोद्धार किया था। मंदिर कलिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ठ उदाहरण है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ जी (श्रीकृष्ण का स्वरूप), बलभद्र जी एवं सुभद्रा जी के साथ विराजमान हैं। मूर्तियां एक रत्न मंडित पाषाण चबूतरे पर स्थापित की गई हैं। भगवान जगन्नाथ जिस स्वरूप में विराजते हैं, ऐसा दुनिया भर के किसी मंदिर में नहीं देखा जाता है। मंदिर वैष्णव संप्रदाय का प्रमुख मंदिर है। मंदिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानंद से जुड़ा है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट क्षेत्रफल में चारदीवारी से घिरा हुआ है।
मंदिर भारत के भव्यतम स्मारकों में से एक है। मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर विष्णु का सुदर्शन चक्र मंडित है जो अष्टधातु का बना है जिसे नीलचक्र भी कहा जाता है। खास बात यह है कि मंदिर के आस-पास कहीं से भी देखने पर सुदर्शन चक्र हमेशा आपको को अपने सामने ही दिखाई देगा। मंदिर ऊंचे पाषाण के चबूतरे पर निर्मित है, जिसकी ऊंचाई 214 फुट है। मंदिर की पिरामिड आकार की छत और लगे हुए मंडप, अट्टालिका रूपी मंदिर के निकट होते हुए भी ऊंचे होते गए हैं। एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ मुख्यद्वार के ठीक सामने स्थित है, जिसे दो सिंहों द्वारा रक्षित किया गया है। जगन्नाथ मंदिर के ऊपर का झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में फहराता है। एक खास बात यह है कि मंदिर के शिखर पर मौजूद झंडा रोज बदला जाता है। ऐसी मान्यता है कि झंडा नहीं बदलने से मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा।
महाप्रसाद
मंदिर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रसोई घर है। यहां 500 रसोईयें एवं 300 सहायक भगवान के लिए प्रसाद बनाते हैं। बताया जाता है कि यह भारत का सबसे बड़ा रसोईघर है। प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है। महाप्रसाद को विशेष विधि से बनाया जाता है। यह प्रसाद केवल मिट्टी के बर्तन में बनता है। प्रसाद लकड़ी के चूल्हे पर बनता है तथा एक के ऊपर एक बर्तन रखे जाते हैं। प्रसाद बनते समय सबसे पहले ऊपर के बर्तन का प्रसाद पकता है। मंदिर में प्रतिदिन हजारों भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं लेकिन कभी भी प्रसाद न तो बचता है और न ही कम होता है।
रथ यात्रा
मध्यकाल से मंदिर का प्रमुख उत्सव रथयात्रा का आयोजन प्रतिवर्ष किया जा रहा है, जो जगन्नाथ मंदिर का मुख्य उत्सव है और आषाढ़ शुल्क पक्ष की द्वितीया को रथ उत्सव के रूप में मनाय जाता है। उत्सव के दौरान पूरा शहर ही धार्मिक भावनाओं में उमड़ उठता है। जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की प्रतिमाएं सजा कर विशेष पूजा अर्चना कर रथों में आरूढ़ की जाती हैं और शहर में उनकी आकर्षक शोभा यात्रा निकाली जाती है। साल में एक बार आयोजित यह उत्सव नौ दिन तक चलता है। इस उत्सव में देशी ही नहीं विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। शोभा यात्रा जगन्नाथ मंदिर से प्रारम्भ होकर गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होती है।
लोकनाथ- साक्षी गोपाल
पुरी में मुख्य मंदिर से एक किलोमीटर दूर लोकनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि भगवान राम ने इसे स्वयं यहां स्थापित किया था। इस मंदिर के साथ ही साक्षी गोपाल का एक औेर प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर का स्थापत्य और कला इसे 13 वीं सदी के आस-पास बना होने का प्रमाण देता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर
भुवनेश्वर से 65 किलोमीटर दूर स्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर अपनी मूर्तिकला एवं वास्तुशिल्प के कारण दुनिया में अपनी विशेष पहचान बनाता है। सम्पूर्ण मंदिर स्थल को बारह जोड़ी चक्रों वाले रथ को सात घोड़ों से खींचते हुए सूर्यदेव के रथ के रूप में बनाया गया है। इनमें से अब केवल एक घोड़ा और कुछ चक्र शेष रह गये हैं। रथ के चक्र कोणार्क की पहचान बन गये हैं और मंदिर को आकर्षक बनाते हैं। मंदिर तीन मण्डपों में बना है जिनमे से दो मण्डप ढह गये हैं तथा तीसरे मण्डप में जहां मूर्ति थी आजादी से पूर्व अंग्रेजों ने रेत व पत्थर भरवाकर सभी द्वारों को बन्द करवा दिया जिससे कि मंदिर क्षतिग्रस्त न हो पाये। इस मंदिर में उदय होते भगवान सूर्य की बाल प्रतिमा 8 फीट की, मध्यान्ह सूर्य युवा अवस्था की प्रतिमा 9.5 फीट तथा अस्त सूर्य की प्रौढ़ावस्था प्रतिमा 3.5 फीट की बनाई गई हैं। प्रवेश द्वार पर दो सिंह हाथियों पर आक्रमण करते हुए बनाये गये हैं। दोनों हाथी मानव आकृति पर स्थापित हैं। यह प्रतिमाएं एक पत्थर की बनाई गई हैं। मंदिर के दक्षिण भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं, जिन्हें ओड़िशा सरकार ने अपने राज्य चिन्ह के रूप में अपनाया है।
सूर्य मंदिर का मुख्य गर्भगृह 229 फीट ऊँचा है तथा इसके साथ ही 128 फीट ऊँची नाट्यशाला बनी हुई है। नाट्यशाला अभी भी पूर्ण रूप से सुरक्षित अवस्था में है। नट मंदिर एवं भोग मण्डप के कुछ भाग ध्वस्त हो गये हैं। मंदिर का मुख्य प्रांगण 857 फीट लम्बा एवं 540 फीट चौड़ा है। यहां की प्राकृतिक हरियाली मंदिर की शोभा को दुगुनित करती है। मंदिर की प्रत्येक दीवार के इंच-इंच हिस्से पर आकर्षक कारीगरी में मूर्तियां तराशी गई हैं। देवी-देवताओं, गंधर्व, मानव, वादक, नृत्यांगना, दरबार, शिकार, प्रेमी युगल, युद्ध, हाथी, घोड़े, बेलबूटे तथा अन्य जीवों की मूर्तियां और ज्यामितिय अलंकरण देखते ही बनते हैं। यहां की शिल्प कला को देखकर दर्शक अचम्भित हो जाता है। मंदिर के समीप ही यहां कि कला कृतियों को संजोये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का संग्रहालय भी दर्शनीय है। सूर्य मंदिर से 3 कि.मी. पर एक सुन्दरतम समुद्री तट को देखने भी सैलानी पहुँचते हैं। यहां सागर में उठती-गिरती लहरों को देखना तथा रेतीले तट पर बैठकर सूर्यास्त का नजारा देखने का अपना अलग ही मजा है। यह एक अच्छा पिकनिक स्थल भी है।
धार्मिक नगर जगन्नाथ पुरी के आस-पास भुवनेश्वर शहर, धोल स्तूप, उदय गिरी- खंड गिरी गुफाएं, चिलका लेक और नंदन कानन प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। यहां ठहरने के लिए हर बजट के होटल एवं धर्मशालाएं उपलब्ध हैं। हर प्रकार का भोजन मिलने से खाने-पीने की कोई समस्या नहीं हैं। आस-पास के दर्शनीय स्थलों के भ्रमण के लिए टूर ऑपरेटर अच्छी सुविधा युक्त बसों का संचालन करते हैं। पूरी देश के प्रमुख शहरों से रेल एवं हवाई सेवा से जुड़ा है। निकटतम एयर पोर्ट भुवनेश्वर में है।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
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