भारत के किस जज को दी गई थी फांसी? क्या थी वजह
जजों को फैसले सुनाते हुए आपने बहुत देखा होगा, लेकिन क्या कभी सुना है कि जज को ही फांसी दे दी गई हो। हम तालिबान की बात नहीं कर रहे। अपने भारत में ही ऐसा हुआ है। जब एक जज को फांसी पर लटका दिया गया। जी हां, यह 100 फीसदी सच है। घटना तकरीबन 45 साल पुरानी है, और इसकी वजह भी बेहद खौफनाक थी, जिसके बारे में जानकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे। ऑनलाइन प्लेटफार्म कोरा पर यह सवाल पूछा गया था, जिसके लोगों ने जवाब दिए। मगर हकीकत हम आपको बता रहे हैं। भारतीय न्यायिक इतिहास में किसी जज को फांसी की सजा देने का यह अनोखा मामला है।
हम जिस जज के बारे में बात कर रहे, उनका नाम उपेंद्र नाथ राजखोवा था। वह असम के डुबरी जिले में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर तैनात थे। ज्यादातर जजों की तरह उन्हें भी सरकारी आवास मिला हुआ था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, फरवरी 1970 में राजखोवा रिटायर हुए, लेकिन सरकारी बंगला खाली नहीं किया। वह अपनी पत्नी और तीन बेटियों के साथ उसी बंगले में रहते थे। एक दिन अचानक उनकी पत्नी और तीनों बेटियां गायब हो गईं। राजखोवा से जब भी उनके परिवार के बारे में पूछा जाता, हर बार कुछ न कुछ बहाना बनाकर टाल जाते थे। इसी बीच अप्रैल में उन्होंने सरकारी बंगला खाली कर दिया और उनकी जगह दूसरे जज आकर उस बंगले में रहने लगे।
सिलीगुड़ी के एक होटल में ठहरे थे
उधर राजखोवा लापता हो गए। किसी को उनके बारे में कुछ पता नहीं था। चूंकि राजखोवा के साले पुलिस में ही थे। जब बहन और भांजियों से उनका संपर्क नहीं हो पाया तो उन्होंने राजखोवा को तलाशना शुरू किया। काफी दिनों बाद पता चला कि वह सिलीगुड़ी के एक होटल में ठहरे हुए हैं। उन्होंने अन्य पुलिसवालों के साथ होटल में छापा मारा। और जब पूछताछ की तो पहले तो राजखोवा ने बहाने बनाए, लेकिन बाद में स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही पत्नी और बेटी की हत्या की है। मारकर सरकारी बंगले में गाड़ दिया था।
हाईकोर्ट-सुप्रीमकोर्ट से राहत नहीं मिली
राजखोवा को गिरफ्तार किया गया। लगभग एक साल मुकदमा चला और निचली अदालत ने राजखोवा को फांसी की सजा सुनाई। वह हाईकोर्ट पहुंचे, लेकिन बात नहीं बनी। हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट गए, मगर वहां भी उनकी अपील खारिज हो गई। खबरों के मुताबिक, फांसी से बचने के लिए राजखोवा ने राष्ट्रपति के सामने दवा याचिका भी लगाई थी, लेकिन उनकी अपील नामंजूर कर दी गई। आखिरकार 14 फरवरी 1976 को जोरहट जेल में राजखोवा को फांसी दे दी गई। हालांकि, अभी भी यह पता नहीं चल पाया कि उन्होंने अपनी पत्नी और बेटियों की हत्या क्यों की।
Sources:News18
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