फहमी साहब ने अपनी जिंदगी बड़ी खामोशी से गुजारी : प्रोफेसर वसीम बरेलवी

 


बदायू: ‘‘ मजहब पता चला जो मुसाफिर की लाश का, चुपचाप आधी भीड़ घरों को चली गई’’। मशहूर शायर फहमी बदायूंनी के शेर की इन पंक्तियों के कायल अंतरराष्ट्रीय शायर प्रोफेसर वसीम बरेलवी भी हैं। करीब नौ साल पहले उन्होंने दिल्ली में एक समारोह में ये शेर सुना था। उसके बाद कई कार्यक्रमों में दोनों की मुलाकात हुई और दोनों ने एक.दूसरे को सुना। फहमी बदायूंनी के निधन को अंतरराष्ट्रीय शायर वसीम बरेलवी ने एक बड़ी क्षति बताया है। उन्होंने कहा कि फहमी साहब ने अपनी जिंदगी बड़ी खामोशी से गुजारी और मंजर-ए-आम पर काफी देरी से आए। उनकी पहली मुलाकात दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में हुई थी।

मुशायरे की सदारत वसीम बरेलवी ही कर रहे थे। इस वजह से उन्होंने ऐसे शायरों को बुलाया था जो बहुत अच्छे थे, लेकिन उनको शोहरत नहीं मिल रही थी। इसी कार्यक्रम में उन्होंने पहली बार फहमी बदायूंनी को सुना था। उन्होंने कई अच्छे शेर पढ़े थे, लेकिन उनके एक शेर से वसीम बरेलवी काफी प्रभावित हुए थे। तब उन्होंने फहमी बदायूंनी से कहा था कि आप छिपे हुए क्यों हैं.....। इस पहली मुलाकात के बाद गाजियाबाद में हुए मुशायरे में फिर फहमी बदायूंनी को बुलवाया गया, जहां मोरारी बापू ने भी उनके शेर को खूब सराहा।

इसके बाद वह अपने शेरों की वजह से सोशल मीडिया पर छा गए। उन्होंने कहा कि फहमी बदायूंनी बहुत अच्छे शायर थे। उन्होंने बदायूं की विरासत को अपने शेरों के जरिये जिंदा रखा। वसीम बरेलवी कहते हैं कि हमारा बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। फहमी बदायूंनी एक नेकदिल और खामोश मिजाज शायर थे। उनकी पकड़ उर्दू शायरी में किसी से छिपी नहीं है। वह आगे भी काफी मुकाम हासिल करते। अभी तो उनका नौ से 10 साल का ही सफर लोगों ने देखा था। उन्होंने रिवायतों को नए तरीकों से पेश किया, यह उनका बड़ा कारनामा था। फहमी बदायूंनी के जाने से शेरों का, गजल और हमारे मंच का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है।

साभार: अमर उजाला

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