भारत मे सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए ये जरूरी है ओटीटी पर सेंसरशिप : डा0नरेश बंसल

 


देहरादून : डा. नरेश बंसल ने सदन मे शून्य काल (जीरो आवर) के दौरान सभापति जी की आज्ञा से महत्वपूर्ण मुद्दा उठाते हुए कहा किओटीटी पर सेंसरशिप होनी चाहिए यह भारत मे सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए ये जरूरी है।डा. नरेश बंसल ने सदन मे कहा कि हम चलते-फिरते मनोरंजन के युग में जी रहे हैं। ओटीटी प्लेटफार्मों के तेजी से उभरने के बाद हम जब चाहें जैसे चाहें अलग-अलग तरह के शो और कार्यक्रमों से अपना मनोरंजन कर सकते हैं। लेकिन ये ओटीटी प्लेटफॉर्म बेकाबू हैं। फिल्मों की रिलीज से पहले उन्हें सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट मिलता है। अगर फिल्मों में कोई आपत्तिजनक संवाद या दृश्य हो तो उस पर सेंसर बोर्ड की कैंची चल जाती है।डा. नरेश बंसल ने सदन का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा की सेंसरशिप एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग एरिया की तरह है। हर चीज वहां नजरों से होकर गुजरती है। वहां कैमरे और स्कैनर होते हैं। इसलिए, अगर आप कोई अवैध सामान ला रहे हैं, तो उसका पता लग जाता है और उसे रोक दिया जाता है।

डा. नरेश बंसल ने सदन को बताया की ओटीटी प्लेटफॉर्म पर सेंसरशिप जैसी चीज नहीं है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी सेंसरशिप होनी चाहिए।सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिए कंटेंट को विनियमित करना आवश्यक है।डा. नरेश बंसल ने सदन मे चिंता जताते हुए कहा कि भारतीय समाज,खासकर युवाओं के बीच नैतिक पतन गंभीर चिंता का विषय है।आजकल बच्चों को मोबाइल फोन के माध्यम से विभिन्न प्रकार की सामग्री देखने को मिल रही है, जिन पर कोई नियंत्रण नहीं है। इसमें कई बार आपत्तिजनक और हानिकारक सामग्री भी शामिल होती है, जो मानसिक रूप से परेशान करने वाली है।

डा. नरेश बंसल ने कहा कि चूंकि सेल्फ-सेंसरशिप नहीं हो रही है ये सीन्स बच्चे भी देखते हैं,पर पाबंदी लगनी चाहिए। साफ सुथरा कंटेट रहेगा तो कई गुना ज्यादा चलेगा और लोग इसे देखना पसंद करेंगे और इसमें ऐसे आपत्तिजनक शब्द और संवाद हैं,इसलिए बच्चे उन्हें सीखते हैं और बोलना शुरू करते हैं।डा. नरेश बंसल ने सदन के माध्यम से सरकार से आग्रह किया की स्वतंत्रता का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है, तो सेंसरशिप होनी चाहिए और अगर ओटीटी सीमा पार करते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।डा. नरेश बंसल ने कहा कि टीवी चैनलों की तुलना में, ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफार्मों को अब अधिक रचनात्मक स्वतंत्रता प्राप्त है क्योंकि वर्तमान में इसके लिए कोई नियम नहीं है, जो कुछ दिखाया जाता है, उस पर कोई नियंत्रण नहीं है।डा. नरेश बंसल ने सरकार से निवेदन करते हुए कहा कि ऐसे में सरकार को चाहिए कि ओटीटी के लिए सामग्री नियामक ढांचा के तहत हो। सरकार को इसके लिए प्रयास करना चाहिए।

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