बिना इन खिलौनों के नहीं होता मकर संक्रांति का पर्व,सूर्य देव रथ से जुड़ी है कथा

 


मकर संक्रांति के पर्व पर बाजार में शक्कर के हाथी, घोड़े और गढ़िया गुल्ला जैसे खिलौनों की भारी मांग रहती है। इन खिलौनों की पूजा की जाती है, क्योंकि इन खिलौनों के बिना मकर संक्रांति की परंपरा अधूरी मानी जाती है। देशभर में मकर संक्रांति मनाई जाती है। देशभर के अलग-अलग जगहों में यह पर्व अनोखे तरीके से मनाया जाता है। बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में भी अनोखे तरीके से मकर संक्रांति का यह त्योहार मनाया जाता है।

दरअसल, बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में मकर संक्राति के पर्व को एक अनूठी परंपरा से मनाया जाता है। यहां मिट्टी के घोड़ों की पूजा करके इस पर्व की शुरुआत होती है और मिट्टी के घोड़ों से बाजार सजे रहते हैं और लोग घोड़ों की खरीदारी भी करते हैं और मकर संक्रांति के मौके पर उनकी पूजा भी करते हैं। साथ ही शक्कर के बने हांथी, घोड़े भी गढ़िया गुल्ला के रूप में भी पूजे जाते हैं इस परंपरा के बारे में बुजुर्गों का मानना है कि घोड़ों की पूजा इसलिए की जाती है कि मकर संक्रांति के दिन से सूर्य देव के घोड़ों ने विश्राम के बाद दोबारा तेज रफ्तार पकड़ी थी।

इसलिए परंपरा है कि घोड़ों की पूजा संकेत देती है कि अब घोड़े फिर से दौड़ने के लिए तैयार हैं। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, इस दिन सूर्य देव जब धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में आते हैं, तो उनके रथ में भी एक परिवर्तन होता है। मकर संक्रांति से सूर्य देव के वेग और प्रभाव में भी वृद्धि होती है। मकर संक्रांति से खरमास भी खत्म हो जाता है और शुभ कार्यों के लिए बृहस्पति ग्रह भी मजबूत स्थिति में आ जाता है।

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