समाजसेवी, व व्यवसायी राजेन्द्र अग्रवाल के साथ हो रही बड़ी साजिश
देहरादून: माफियाओं ने देवभूमि उत्तराखण्ड को अपना सॉफ्ट टारगेट बना लिया है । अपने काले कारनामों से ये लोग देवभूमि का नाम बदनाम कर रहे हैं। जैसा कि आपको मालूम ही है हर वयक्ति की सोच होती है कि वो अपना एक छोटा सा आशियाना बनाये लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जो कूट रचित तरीके से इन लोगों की गाढ़ी कमाई पर धोखधाड़ी से हाथ साफ कर उनके अरमानों पर पानी फेर देते हैं। ऐसा ही एक वाक्या राजधानी देहरादून में सामने आया है यू तो आये दिन जनपद में हजारों जमीन धोखाधड़ी के मामले सामने आते ही हैं लेकिन यहाँ एक ऐसा भी मामला सामने आया है जहां पर विश्वास का ही गला घोंटा गया है। आपको बता दें कि देहरादून में समाजसेवी व व्यवसायी राजेन्द्र अग्रवाल के साथ बहुत बड़ी साजिश रची जा रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय किसान यूनियन (तोमर) में रहकर अनैतिक कार्यों में संलिप्त रहने के कारण कुछ लोगों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया था। लेकिन अब उने तथकथित लोगो द्वारा राजेंद्र अग्रवाल से मोटी रकम वसूलने की कोशिश की जा रही है ।
वीडियों सौजन्य से उत्तराखण्ड केसरी
आज देहरादून में भारतीय किसान यूनियन (तोमर) ने एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी संजीव तोमर ने राजेन्द्र अग्रवाल को आश्वस्त करते हुए कहा कि हम इस लड़ाई में हर समय आपके साथ है। हमारी पार्टी के नाम पर गलत काम करने वालो को हम जरूर सबक सिखाएंगे। मिली जारनकारी के अनुसार कोरोना काल से पूर्व किशन लाल मेहन्दीरत्ता से राजेन्द्र अग्रवाल ने जमीन को लेकर एग्रीमेन्ट किया था, एग्रीमेन्ट के अनुसार राजेन्द्र अग्रवाल ने एक करोड रूपये बैंक एकाउंट में व दो करोड रूपये नगद किशन लाल को दिये थे । किशन लाल ने इस एग्रीमेन्ट के एवज में राजेन्द्र अग्रवाल को मौके पर जमीन को डेवलप कर बेचने के लिये कब्जा भी दे दिया। इतना ही नहीं किशन लाल ने बाकायदा कुछ रजिस्ट्रियां भी लोगों को की, लेकिन इस दौरान किशन लाल की मृत्यु हो गयी। किशन लाल की मृत्यु के बाद वसीयत के आधार पर उनकी पत्नी के नाम पर जमीन आ गयी लेकिन उनकी भी मृत्यु हो गयी जिसके बाद किशन लाल के तीनों पुत्रों राजेन्द्र, संदीप, ललित व उनकी दो पुत्रियों डिम्पल व अनिता के नाम पर किशन लाल की सारी भूमि आ गयी जिसके पश्चात किशन लाल के बेटों व उनकी पुत्रियों ने एक पारिवारिक समझौता करते हुये अपने पिता किशन लाल द्वारा राजेन्द्र अग्रवाल के साथ किये गये अनुबन्ध को आगे बढाते हुये न सिर्फ पैसों का लेन देन जारी रखा बल्कि राजेन्द्र, डिम्पल व अनीता ने बाकायदा एक रिलिक्वींस डीड (त्याग पत्र) व पॉवर ऑफ अटोर्नी ललित मेहन्दीरत्ता के नाम पर बाकायदा सब.रजिस्ट्रार कार्यालय में रजिस्टर्ड करवायी।
पारिवारिक समझौते के तहत राजेन्द्र अग्रवाल, मेहन्दीरत्ता परिवार को विभिनन माध्यमों के द्वारा (नगद व बैंक अन्तरण) भुगतान करते रहे, जिसके एवज में ललित मेहन्दीरत्ता ने राजेन्द्र अग्रवाल द्वारा मनोनीत व्यक्तियों के पक्ष में भूखण्डों के विक्रय विलेख भी अंकित करवाये। इतना सब होने के बाद राजेन्द्र मेहन्दीरत्ता कोर्ट चले गये जहां उन्होंने न्यायालय से यह बात छिपायी कि उनके परिवार में कोई पारिवारिक समझौता हुआ है, उन्होंने न्यायालय से यह भी छिपाया कि उन्होंने अपने छोटे भाई ललित मेहन्दीरत्ता के पक्ष में पॉवर ऑफ अटोर्नी व रिलिक्वींस डीड रजिस्टर्ड करवायी है। राजेन्द्र मेहन्दीरत्ता ने इस कूट रचना को कर कोर्ट से स्टे हासिल कर लिया। इस दौरान राजेन्द्र मेहन्दीरत्ता ने राजेन्द्र अग्रवाल से अनुबन्धित भूमि का एक अन्य व्यक्ति मंजीत सिंह के साथ भी रजिस्टर्ड अनुबन्ध कर लिया, तीन अलग-अलग अनुबन्ध पत्रों के माध्यम से राजेन्द्र मेहन्दीरत्ता ने मंजीत सिंह से मोटी रकम ले ली। मेहन्दीरत्ता परिवार के दो अन्य सदस्य यशपाल मेहन्दीरत्ता व सुभाष मेहन्दीरत्ता ने किशन लाल के समय में किये गये विक्रय अनुबन्ध के अनुसार राजेन्द्र अग्रवाल से न केवल तय पायी गयी अधिकांश धनराशि ले ली है, बल्कि अधिकांश भूखण्डों के विक्रय विलेख भी अंकित करा दिये गये है।
राजेन्द्र अग्रवाल ने किशल लाल की मृत्यु के बाद उनके परिवार की सहमति से उपरोक्त भूमि को विकसित करने के लिये करोडों रूपये खर्च कर दिये, जिसके बाद राजेन्द्र मेहन्दीरत्ता व संदीप मेहन्दीरत्ता ने कुछ लोगों के साथ मिलकर राजेन्द्र अग्रवाल पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। ये लोग राजेन्द्र अग्रवाल से ज्यादा पैसों की मांग करते हुये उन्हें ब्लैकमेल करने लगे। इस दौरान इन्होंने कोर्ट कचहरी से लेकर समाज के प्रतिष्ठित लोगों तक को गुमराह कर राजेन्द्र अग्रवाल की छवि धूमिल करनी शुरू कर दी। यह लोग एक षडयंत्र के तहत राजेन्द्र अग्रवाल से बातचीत भी करते रहे और उनकी छवि धूमिल करने का षडयंत्र भी रचते रहे। इन लोगों को जब अपने प्रयासों में कामयाबी न मिली तो इन्होंने किसान यूनियन से ब्लैकमेलिंग व उगाही के आरोप में निकाल गये लोगों द्वारा बनाये गये किसान वैलफेयर फाउंडेशन के नाम पर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। इस फाउंडेशन के लोगों ने अनेक माध्यमों से राजेन्द्र अग्रवाल के पास मोटी रकम देने का दबाव बनाया और जब वह कामयाब नहीं हुये तो इन लोगों ने किसानों का चोला पहनकर धरना प्रदर्शन करने की धमकियां देनी शुरू कर दी।
देहरादून: माफियाओं ने देवभूमि उत्तराखण्ड को अपना सॉफ्ट टारगेट बना लिया है । अपने काले कारनामों से ये लोग देवभूमि का नाम बदनाम कर रहे हैं। जैसा कि आपको मालूम ही है हर वयक्ति की सोच होती है कि वो अपना एक छोटा सा आशियाना बनाये लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जो कूट रचित तरीके से इन लोगों की गाढ़ी कमाई पर धोखधाड़ी से हाथ साफ कर उनके अरमानों पर पानी फेर देते हैं। ऐसा ही एक वाक्या राजधानी देहरादून में सामने आया है यू तो आये दिन जनपद में हजारों जमीन धोखाधड़ी के मामले सामने आते ही हैं लेकिन यहाँ एक ऐसा भी मामला सामने आया है जहां पर विश्वास का ही गला घोंटा गया है। आपको बता दें कि देहरादून में समाजसेवी व व्यवसायी राजेन्द्र अग्रवाल के साथ बहुत बड़ी साजिश रची जा रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय किसान यूनियन (तोमर) में रहकर अनैतिक कार्यों में संलिप्त रहने के कारण कुछ लोगों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया था। लेकिन अब उने तथकथित लोगो द्वारा राजेंद्र अग्रवाल से मोटी रकम वसूलने की कोशिश की जा रही है ।
आज देहरादून में भारतीय किसान यूनियन (तोमर) ने एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी संजीव तोमर ने राजेन्द्र अग्रवाल को आश्वस्त करते हुए कहा कि हम इस लड़ाई में हर समय आपके साथ है। हमारी पार्टी के नाम पर गलत काम करने वालो को हम जरूर सबक सिखाएंगे। मिली जारनकारी के अनुसार कोरोना काल से पूर्व किशन लाल मेहन्दीरत्ता से राजेन्द्र अग्रवाल ने जमीन को लेकर एग्रीमेन्ट किया था, एग्रीमेन्ट के अनुसार राजेन्द्र अग्रवाल ने एक करोड रूपये बैंक एकाउंट में व दो करोड रूपये नगद किशन लाल को दिये थे । किशन लाल ने इस एग्रीमेन्ट के एवज में राजेन्द्र अग्रवाल को मौके पर जमीन को डेवलप कर बेचने के लिये कब्जा भी दे दिया। इतना ही नहीं किशन लाल ने बाकायदा कुछ रजिस्ट्रियां भी लोगों को की, लेकिन इस दौरान किशन लाल की मृत्यु हो गयी। किशन लाल की मृत्यु के बाद वसीयत के आधार पर उनकी पत्नी के नाम पर जमीन आ गयी लेकिन उनकी भी मृत्यु हो गयी जिसके बाद किशन लाल के तीनों पुत्रों राजेन्द्र, संदीप, ललित व उनकी दो पुत्रियों डिम्पल व अनिता के नाम पर किशन लाल की सारी भूमि आ गयी जिसके पश्चात किशन लाल के बेटों व उनकी पुत्रियों ने एक पारिवारिक समझौता करते हुये अपने पिता किशन लाल द्वारा राजेन्द्र अग्रवाल के साथ किये गये अनुबन्ध को आगे बढाते हुये न सिर्फ पैसों का लेन देन जारी रखा बल्कि राजेन्द्र, डिम्पल व अनीता ने बाकायदा एक रिलिक्वींस डीड (त्याग पत्र) व पॉवर ऑफ अटोर्नी ललित मेहन्दीरत्ता के नाम पर बाकायदा सब.रजिस्ट्रार कार्यालय में रजिस्टर्ड करवायी।
पारिवारिक समझौते के तहत राजेन्द्र अग्रवाल, मेहन्दीरत्ता परिवार को विभिनन माध्यमों के द्वारा (नगद व बैंक अन्तरण) भुगतान करते रहे, जिसके एवज में ललित मेहन्दीरत्ता ने राजेन्द्र अग्रवाल द्वारा मनोनीत व्यक्तियों के पक्ष में भूखण्डों के विक्रय विलेख भी अंकित करवाये। इतना सब होने के बाद राजेन्द्र मेहन्दीरत्ता कोर्ट चले गये जहां उन्होंने न्यायालय से यह बात छिपायी कि उनके परिवार में कोई पारिवारिक समझौता हुआ है, उन्होंने न्यायालय से यह भी छिपाया कि उन्होंने अपने छोटे भाई ललित मेहन्दीरत्ता के पक्ष में पॉवर ऑफ अटोर्नी व रिलिक्वींस डीड रजिस्टर्ड करवायी है। राजेन्द्र मेहन्दीरत्ता ने इस कूट रचना को कर कोर्ट से स्टे हासिल कर लिया। इस दौरान राजेन्द्र मेहन्दीरत्ता ने राजेन्द्र अग्रवाल से अनुबन्धित भूमि का एक अन्य व्यक्ति मंजीत सिंह के साथ भी रजिस्टर्ड अनुबन्ध कर लिया, तीन अलग-अलग अनुबन्ध पत्रों के माध्यम से राजेन्द्र मेहन्दीरत्ता ने मंजीत सिंह से मोटी रकम ले ली। मेहन्दीरत्ता परिवार के दो अन्य सदस्य यशपाल मेहन्दीरत्ता व सुभाष मेहन्दीरत्ता ने किशन लाल के समय में किये गये विक्रय अनुबन्ध के अनुसार राजेन्द्र अग्रवाल से न केवल तय पायी गयी अधिकांश धनराशि ले ली है, बल्कि अधिकांश भूखण्डों के विक्रय विलेख भी अंकित करा दिये गये है।
राजेन्द्र अग्रवाल ने किशल लाल की मृत्यु के बाद उनके परिवार की सहमति से उपरोक्त भूमि को विकसित करने के लिये करोडों रूपये खर्च कर दिये, जिसके बाद राजेन्द्र मेहन्दीरत्ता व संदीप मेहन्दीरत्ता ने कुछ लोगों के साथ मिलकर राजेन्द्र अग्रवाल पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। ये लोग राजेन्द्र अग्रवाल से ज्यादा पैसों की मांग करते हुये उन्हें ब्लैकमेल करने लगे। इस दौरान इन्होंने कोर्ट कचहरी से लेकर समाज के प्रतिष्ठित लोगों तक को गुमराह कर राजेन्द्र अग्रवाल की छवि धूमिल करनी शुरू कर दी। यह लोग एक षडयंत्र के तहत राजेन्द्र अग्रवाल से बातचीत भी करते रहे और उनकी छवि धूमिल करने का षडयंत्र भी रचते रहे। इन लोगों को जब अपने प्रयासों में कामयाबी न मिली तो इन्होंने किसान यूनियन से ब्लैकमेलिंग व उगाही के आरोप में निकाल गये लोगों द्वारा बनाये गये किसान वैलफेयर फाउंडेशन के नाम पर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। इस फाउंडेशन के लोगों ने अनेक माध्यमों से राजेन्द्र अग्रवाल के पास मोटी रकम देने का दबाव बनाया और जब वह कामयाब नहीं हुये तो इन लोगों ने किसानों का चोला पहनकर धरना प्रदर्शन करने की धमकियां देनी शुरू कर दी।
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