"सियासत की शतरंज पर हिन्दू-मुस्लिम मोहरे"

 


(सलीम रज़ा,पत्रकार)

भारत एक विविधताओं वाला देश है जहाँ धर्म, भाषा, संस्कृति और जाति का मिश्रण उसकी पहचान है। हिन्दू और मुस्लिम समुदाय इस देश के दो सबसे बड़े धार्मिक समुदाय हैं, जिनका इतिहास, संघर्ष, सह-अस्तित्व और योगदान भारतीय समाज के मूल ढांचे में गहराई से जुड़ा हुआ है। लेकिन दुर्भाग्यवश, यह विविधता कई बार राजनीति का साधन बन जाती है। सियासत में "हिन्दू-मुस्लिम" एक ऐसा मुद्दा बन चुका है, जो वोट बैंक की राजनीति से लेकर दंगों और सामाजिक ध्रुवीकरण तक में बार-बार उभर कर सामने आता है।हिन्दू-मुस्लिम संबंधों की जड़ें भारत में इस्लाम के आगमन से जुड़ी हैं। मुग़ल काल से लेकर ब्रिटिश शासन तक, इन दोनों समुदायों के बीच सहयोग और संघर्ष दोनों की कहानियाँ मिलती हैं। अं

ग्रेजों ने "फूट डालो और राज करो" की नीति के तहत हिन्दू-मुस्लिम मतभेदों को गहराया, जिसका परिणाम भारत-विभाजन के रूप में सामने आया। 1947 के बाद से, भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना, लेकिन सियासत में धर्म का हस्तक्षेप कभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ।स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया, लेकिन धीरे-धीरे अन्य राजनीतिक दलों ने धार्मिक पहचान को वोट बैंक में बदलने का प्रयास किया।भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने "हिन्दुत्व" की विचारधारा को अपनी राजनीति का आधार बनाया, विशेषकर 1980 के दशक के बाद से।

अयोध्या राम मंदिर आंदोलन इसका बड़ा उदाहरण है।समाजवादी पार्टी, AIMIM, TMC आदि जैसे कई क्षेत्रीय दल मुस्लिम समुदाय के हितों की बात करके उनका समर्थन पाने की कोशिश करते हैं।इन प्रयासों ने दोनों समुदायों को अपने-अपने खेमों में बांटने का काम किया।हर चुनाव के समय "हिन्दू-मुस्लिम" एक प्रमुख मुद्दा बन जाता है। सांप्रदायिक तनाव को उभारकर और धार्मिक भावनाओं को भड़काकर पार्टियाँ ध्रुवीकरण करती हैं। इसके उदाहरण हैं: गुजरात दंगे (2002),मुज़फ्फरनगर दंगे (2013), CAA-NRC पर विरोध और समर्थन,हिजाब, लव जिहाद, गौ-हत्या जैसे मुद्दे , इन मुद्दों का इस्तेमाल राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया गया। धार्मिक ध्रुवीकरण में मीडिया और सोशल मीडिया का प्रभाव भी कम नहीं है। कुछ मीडिया हाउस और यूट्यूब चैनल खुलेआम हिन्दू या मुस्लिम पक्ष लेकर नफरत को बढ़ावा देते हैं। वायरल वीडियो, झूठी खबरें और फेक न्यूज लोगों के बीच गलतफहमियां पैदा करती हैं और समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर देती हैं।

धार्मिक राजनीति का सबसे बड़ा नुकसान सामाजिक सौहार्द को होता है।आपसी विश्वास कम होता है,युवाओं में कट्टरता बढ़ती है,धर्म के नाम पर हिंसा और नफरत को बढ़ावा मिलता है,विकास और रोजगार जैसे असली मुद्दे पीछे छूट जाते हैं शिक्षा और जागरूकता: युवाओं को धर्मनिरपेक्षता और भारतीय संविधान की मूल भावना से जोड़ना ज़रूरी है। साम्प्रदायिकता विरोधी कानून: ऐसे कड़े कानून बनने चाहिए जो धर्म के आधार पर नफरत फैलाने वालों को सजा दें।

नागरिक भागीदारी: आम नागरिकों को सियासी चालों को समझते हुए अपने वोट का सही उपयोग करना चाहिए।स्वतंत्र मीडिया: मीडिया को निष्पक्ष और जिम्मेदार होना होगा ताकि वह समाज को जोड़ने का काम करे, तोड़ने का नहीं। भारत की ताकत उसकी विविधता में है, लेकिन जब यही विविधता राजनीति का हथियार बन जाती है, तो वह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बन जाती है। हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा राजनीतिक फायदे के लिए जितना उछाला गया है, उतना ही देश को पीछे खींचा है। अब समय आ गया है कि हम धर्म से ऊपर उठकर विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे वास्तविक मुद्दों पर बात करें और सियासत को मजबूर करें कि वह भी वही करे।

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