"रहस्य या साजिश? वगैर वीजा रुके पाकिस्तानियों पर बढ़ता शक"
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रत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक संबंध बेहद जटिल और संवेदनशील रहे हैं। विभाजन के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते अक्सर तनावपूर्ण रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में जब पाकिस्तानी नागरिक बिना वीजा या वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद भी भारत में रुके रहते हैं, तो स्वाभाविक रूप से उनकी मंशा पर सवाल उठने लगते हैं। यह न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा बनता है, बल्कि सामाजिक समरसता और कानून-व्यवस्था के लिए भी चुनौती उत्पन्न करता है।
समस्या की व्यापकता
हर साल सैकड़ों पाकिस्तानी नागरिक विभिन्न कारणों से भारत आते हैं — पारिवारिक मुलाकातें, व्यापार, चिकित्सा उपचार, धार्मिक यात्राएँ आदि। इनमें से अधिकांश नियमानुसार निर्धारित समय में वापस लौट जाते हैं, लेकिन एक छोटा सा हिस्सा बिना अनुमति के भारत में रुक जाता है। गृह मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों की रिपोर्टों के अनुसार, समय-समय पर ऐसे व्यक्तियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
इनमें से कुछ लोग जानबूझकर छिप जाते हैं और फर्जी दस्तावेज़ बनाकर भारतीय समाज में घुलने-मिलने की कोशिश करते हैं, जबकि कुछ वास्तविक कारणों से भी फँस जाते हैं — जैसे पारिवारिक विवाद, बीमारियाँ या अन्य सामाजिक कारण।
सुरक्षा एजेंसियों की चिंताएँ
भारत की सुरक्षा एजेंसियों को इस विषय पर विशेष चिंता रहती है, खासकर तब जब यह संदेह उठता है कि कुछ पाकिस्तानी नागरिक किसी आतंकी संगठन या राष्ट्रविरोधी गतिविधि से जुड़े हो सकते हैं।
हाल के वर्षों में कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहाँ अवैध रूप से भारत में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों ने:
फर्जी भारतीय पहचान पत्र (जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड) बनवाए।
संवेदनशील क्षेत्रों में घूमने की कोशिश की।
संदिग्ध व्यक्तियों से संपर्क स्थापित किया।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिए संवेदनशील सूचनाएँ साझा करने की कोशिश की।
इन घटनाओं से यह आशंका और गहरी हो जाती है कि कुछ लोग भारत में घुसपैठ या जासूसी के इरादे से भी आ सकते हैं।
मानवीय दृष्टिकोण
हालाँकि, हर मामले में संदेह करना भी उचित नहीं है। कई पाकिस्तानी नागरिक मानवीय कारणों से भारत में रुक जाते हैं। कुछ प्रमुख उदाहरण:
शादी के कारण: बहुत से मामलों में पाकिस्तानी महिलाएँ भारतीय पुरुषों से विवाह कर लेती हैं और नागरिकता प्रक्रिया लंबी होने के कारण वीजा अवधि समाप्त होने के बावजूद भारत में रहती हैं।
धार्मिक अल्पसंख्यक: पाकिस्तान के हिंदू, सिख और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक जो भारत में शरण लेने आते हैं, अक्सर वीजा की मियाद खत्म होने के बाद भी कानूनी मंजूरी के इंतजार में रहते हैं।
चिकित्सा कारण: गंभीर बीमारियों के उपचार हेतु आए कई पाकिस्तानी मरीज लंबे इलाज के कारण निर्धारित समय से अधिक रुक जाते हैं।
ऐसे मामलों में मानवीय संवेदना आवश्यक है, लेकिन साथ ही, सही दस्तावेजी प्रक्रिया का पालन भी जरूरी है।
कानूनी पहलू
भारतीय कानून के तहत बिना वैध वीजा या परमिट के देश में रहना अपराध है। विदेशी नागरिकों को वीजा नियमों का पालन करना अनिवार्य है। यदि कोई वीजा उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाती है, जिसमें:
गिरफ्तारी
जुर्माना
डिपोर्टेशन (निर्वासन)
भविष्य में भारत आने पर प्रतिबंध शामिल हैं।
सरकार ने कई बार "लंबे समय से रुके विदेशियों" के लिए विशेष योजनाएँ चलाई हैं ताकि वे अपनी स्थिति को नियमित कर सकें, लेकिन सुरक्षा जांच के बाद ही इस प्रकार की राहत दी जाती है।
सरकार और एजेंसियों के प्रयास
भारतीय सरकार ने वीजा निगरानी और अनुपालन को मजबूत बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं:
वीजा ऑनलाइन निगरानी प्रणाली (BoVMS) का विकास।
पुलिस वेरिफिकेशन को सख्त बनाना।
राज्य पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाना।
फर्जी दस्तावेज़ बनाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करना।
इसके अलावा, विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत नागरिकता प्रदान करने की प्रक्रिया भी इसी संदर्भ में एक महत्वपूर्ण पहल मानी जाती है। बहरहाल वगैर वीजा भारत में रुके पाकिस्तानी नागरिकों की मंशा को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है, खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से। लेकिन हर मामले को एक ही नजरिए से देखना अन्यायपूर्ण भी हो सकता है। आवश्यकता है संतुलित दृष्टिकोण की — जहाँ एक ओर सुरक्षा एजेंसियाँ चौकस रहें, वहीं मानवीय आधार पर भी सही मामलों को उचित प्रक्रिया के तहत सहायता दी जाए।भारत की लोकतांत्रिक और उदार छवि को कायम रखते हुए सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना समय की सबसे बड़ी मांग है।
जैसा कि अब देखा गया कि पहलगाम नरसंहार के बाद जब गृह मंत्रालय ने भारत में रह रहे पाकिस्तानियों को वापस जाने को कहा तो न जाने कितने ऐसे मामले आ गये जिनकी वीजा अवधि खत्म हो गई और वो सालों से यहां रह रहे हैं। अब सुरक्षा एजेंसियों और एलआईयू पर सवाल उठना लाजमी है कि सुरक्षा एजेंसियां अपना दायित्व सही तरह से नहीं निभा रही हैं जो भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन रही हैं।
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